ये क़िस्सा वो नहीं तुम जिस को क़िस्सा-ख़्वाँ से सुनो मिरे फ़साना-ए-ग़म को मिरी ज़बाँ से सुनो सुनाओ दर्द-ए-दिल अपना तो दम-ब-दम फ़रियाद मिसाल-ए-नय मिरी हर एक उस्तुख़्वाँ से सुनो करो हज़ार सितम ले के ज़िक्र क्या यक यार शिकायत अपनी तुम इस अपने नीम-जाँ से सुनो ख़ुदा के वास्ते ऐ हमदमो न बोलो तुम पयाम लाया है क्या नामा-बर वहाँ से सुनो तुम्हारे इश्क़ ने रुस्वा किया जहाँ में हमें हमारा ज़िक्र न तुम...
Zulf Jo Rukh Par Tire Ai Mehr E Talat Khul Gaii Bahadur Shah Zafar Ghazals
ज़ुल्फ़ जो रुख़ पर तिरे ऐ मेहर-ए-तलअत खुल गई हम को अपनी तीरा-रोज़ी की हक़ीक़त खुल गई क्या तमाशा है रग-ए-लैला में डूबा नेश्तर फ़स्द-ए-मजनूँ बाइस-ए-जोश-ए-मोहब्बत खुल गई दिल का सौदा इक निगह पर है तिरी ठहरा हुआ नर्ख़ तू क्या पूछता है अब तो क़ीमत खुल गई आईने को नाज़ था क्या अपने रू-ए-साफ़ पर आँख ही पर देखते ही तेरी सूरत खुल गई थी असीरान-ए-क़फ़स को आरज़ू परवाज़ की खुल गई खिड़की क़फ़स की क्या कि क़िस्मत...
Sab Rang Men Us Gul Kii Mire Shaan Hai Maujuud Bahadur Shah Zafar Ghazals
सब रंग में उस गुल की मिरे शान है मौजूद ग़ाफ़िल तू ज़रा देख वो हर आन है मौजूद हर तार का दामन के मिरे कर के तबर्रुक सर-बस्ता हर इक ख़ार-ए-बयाबान है मौजूद उर्यानी-ए-तन है ये ब-अज़-ख़िलअत-ए-शाही हम को ये तिरे इश्क़ में सामान है मौजूद किस तरह लगावे कोई दामाँ को तिरे हाथ होने को तू अब दस्त-ओ-गरेबान है मौजूद लेता ही रहा रात तिरे रुख़ की बलाएँ तू पूछ ले ये ज़ुल्फ़-ए-परेशान है मौजूद तुम चश्म-ए-हक़ीक़त से...
Shaane Kii Har Zabaan Se Sune Koii Laaf E Zulf Bahadur Shah Zafar Ghazals
शाने की हर ज़बाँ से सुने कोई लाफ़-ए-ज़ुल्फ़ चीरे है सीना रात को ये मू-शिगाफ़-ए-ज़ुल्फ़ जिस तरह से कि काबे पे है पोशिश-ए-सियाह इस तरह इस सनम के है रुख़ पर ग़िलाफ़-ए-ज़ुल्फ़ बरहम है इस क़दर जो मिरे दिल से ज़ुल्फ़-ए-यार शामत-ज़दा ने क्या किया ऐसा ख़िलाफ़-ए-ज़ुल्फ़ मतलब न कुफ़्र ओ दीं से न दैर ओ हरम से काम करता है दिल तवाफ़-ए-इज़ार ओ तवाफ़-ए-ज़ु़ल्फ़ नाफ़-ए-ग़ज़ाल-ए-चीं है कि है नाफ़ा-ए-ततार क्यूँकर...