अगर गुलशन तरफ़ वो नौ-ख़त-ए-रंगीं-अदा निकले गुल ओ रैहाँ सूँ रंग-ओ-बू शिताबी पेशवा निकले खिले हर ग़ुंचा-ए-दिल ज्यूँ गुल-ए-शादाब शादी सूँ अगर टुक घर सूँ बाहर वो बहार-दिल-कुशा निकले ग़नीम-ए-ग़म किया है फ़ौज-बंदी इश्क़-बाज़ां पर बजा है आज वो राजा अगर नौबत बजा निकले निसार उस के क़दम ऊपर करूँ अंझुवाँ के गौहर सब अगर करने कूँ दिल-जूई वो सर्व-ए-ख़ुश-अदा निकले सनम आए करूँगा नाला-ए-जाँ-सोज़ कूँ ज़ाहिर मगर उस...
तुम भी ख़फा हो लोग भी बरहम हैं दोस्तों – Ahmad Faraz Ghazal
तुम भी ख़फा हो लोग भी बरहम हैं दोस्तों अ़ब हो चला यकीं के बुरे हम हैं दोस्तों किसको हमारे हाल से निस्बत हैं क्या करे आखें तो दुश्मनों की भी पुरनम हैं दोस्तों अपने सिवा हमारे न होने का ग़म किसे अपनी तलाश में तो हम ही हम हैं दोस्तों कुछ आज शाम ही से हैं दिल भी बुझा बुझा कुछ शहर के चराग भी मद्धम हैं दोस्तों इस शहरे आरज़ू से भी बाहर निकल चलो अ़ब दिल की रौनकें भी कोई दम हैं दोस्तों सब कुछ सही “फ़राज़”...
Khud Naved E Zindagii Laaii Qazaa Mere Liye Meer Anees Ghazals
ख़ुद नवेद-ए-ज़िंदगी लाई क़ज़ा मेरे लिए शम-ए-कुश्ता हूँ फ़ना में है बक़ा मेरे लिए ज़िंदगी में तो न इक दम ख़ुश किया हँस बोल कर आज क्यूँ रोते हैं मेरे आश्ना मेरे लिए कुंज-ए-उज़्लत में मिसाल-ए-आसिया हूँ गोशा-गीर रिज़्क़ पहुँचाता है घर बैठे ख़ुदा मेरे लिए तू सरापा अज्र ऐ ज़ाहिद मैं सर-ता-पा गुनाह बाग़-ए-जन्नत तेरी ख़ातिर कर्बला मेरे लिए नाम रौशन कर के क्यूँकर बुझ न जाता मिस्ल-ए-शम्अ’ ना...
Ishq E But Men Kufr Kaa Mujh Ko Adab Karnaa Padaa Akbar Allahabadi Ghazals
इश्क़-ए-बुत में कुफ़्र का मुझ को अदब करना पड़ा जो बरहमन ने कहा आख़िर वो सब करना पड़ा सब्र करना फ़ुर्क़त-ए-महबूब में समझे थे सहल खुल गया अपनी समझ का हाल जब करना पड़ा तजरबे ने हुब्ब-ए-दुनिया से सिखाया एहतिराज़ पहले कहते थे फ़क़त मुँह से और अब करना पड़ा शैख़ की मज्लिस में भी मुफ़्लिस की कुछ पुर्सिश नहीं दीन की ख़ातिर से दुनिया को तलब करना पड़ा क्या कहूँ बे-ख़ुद हुआ मैं किस निगाह-ए-मस्त से अक़्ल को भी...
Ik Hunar Thaa Kamaal Thaa Kyaa Thaa Parveen Shakir Ghazals
इक हुनर था कमाल था क्या था मुझ में तेरा जमाल था क्या था तेरे जाने पे अब के कुछ न कहा दिल में डर था मलाल था क्या था बर्क़ ने मुझ को कर दिया रौशन तेरा अक्स-ए-जलाल था क्या था हम तक आया तू बहर-ए-लुत्फ़-ओ-करम तेरा वक़्त-ए-ज़वाल था क्या था जिस ने तह से मुझे उछाल दिया डूबने का ख़याल था क्या था जिस पे दिल सारे अहद भूल गया भूलने का सवाल था क्या था तितलियाँ थे हम और क़ज़ा के पास सुर्ख़ फूलों का जाल था क्या...
Sher Hotaa Hai Ab Mahiinon Men Habib Jalib Ghazals
शे’र होता है अब महीनों में ज़िंदगी ढल गई मशीनों में प्यार की रौशनी नहीं मिलती उन मकानों में उन मकीनों में देख कर दोस्ती का हाथ बढ़ाओ साँप होते हैं आस्तीनों में क़हर की आँख से न देख इन को दिल धड़कते हैं आबगीनों में आसमानों की ख़ैर हो यारब इक नया अज़्म है ज़मीनों में वो मोहब्बत नहीं रही ‘जालिब’ हम-सफ़ीरों में हम-नशीनों में – Habib Jalib sher hotā hai ab mahīnoñ meñ zindagī...
Aaj Aaraaish E Gesuu E Dotaa Hotii Hai Akbar Allahabadi Ghazals
आज आराइश-ए-गेसू-ए-दोता होती है फिर मिरी जान गिरफ़्तार-ए-बला होती है शौक़-ए-पा-बोसी-ए-जानाँ मुझे बाक़ी है हनूज़ घास जो उगती है तुर्बत पे हिना होती है फिर किसी काम का बाक़ी नहीं रहता इंसाँ सच तो ये है कि मोहब्बत भी बला होती है जो ज़मीं कूचा-ए-क़ातिल में निकलती है नई वक़्फ़ वो बहर-ए-मज़ार-ए-शोहदा होती है जिस ने देखी हो वो चितवन कोई उस से पूछे जान क्यूँ-कर हदफ़-ए-तीर-ए-क़ज़ा होती है नज़्अ’ का...
Sar Hii Ab Phodiye Nadaamat Men Jaun Eliya Ghazals
सर ही अब फोड़िए नदामत में नींद आने लगी है फ़ुर्क़त में हैं दलीलें तिरे ख़िलाफ़ मगर सोचता हूँ तिरी हिमायत में रूह ने इश्क़ का फ़रेब दिया जिस्म को जिस्म की अदावत में अब फ़क़त आदतों की वर्ज़िश है रूह शामिल नहीं शिकायत में इश्क़ को दरमियाँ न लाओ कि मैं चीख़ता हूँ बदन की उसरत में ये कुछ आसान तो नहीं है कि हम रूठते अब भी हैं मुरव्वत में वो जो ता’मीर होने वाली थी लग गई आग उस इमारत में ज़िंदगी किस...